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असमानता दूर करने चलाया जाएगा कार्यक्रम.. यूनिसेफ

रायपुर    स्कूली बच्चों के मन में जेण्डर असमानता को मिटाने और उनमें आत्म सम्मान और शारीरिक आत्मविश्वास बढ़ाने और इससे जुड़े विभिन्न मुद्दों पर जानकारी साझा करने के लिए एक विशेष कार्ययोजना तैयार की गई है। यह कार्यक्रम पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में राज्य शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद और छत्तीसगढ़ में यूनिसेफ के सहयोग से राजनांदगांव और दंतेवाड़ा में चलाया जाएगा। सेल्फ ईस्टीम एण्ड बॉडी कान्फिडेंस आफ स्टूडेंट नाम से चलाए जाने वाले इस कार्यक्रम में मिडिल स्कूल के बच्चों को इस कार्यक्रम के जरिए जेण्डर असमानता को दूर करने और अपने शारीरिक क्षमताओं और जेण्डर भेद के विभिन्न मुद्दों पर समझ विकसित करने के साथ साथ उनमें आत्म सम्मान और आत्मविश्वास विकसित करने संबंधी जानकारी दी जाएगी।

राज्य शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद, छत्तीसगढ़ में यूनिसेफ के सहयोग से राजनाँदगांव और दंतेवाड़ा जिले के कक्षा 6 से कक्षा 8 के किशोर-किशोरी बालक एवं बालिकाओं हेत मास्टर ट्रेनर्स का चार दिवसीय प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मास्टर ट्रेनर्स के प्रशिक्षण उपरांत राजनांदगांव और दंतेवाड़ा जिले के 13 ब्लॉक के 1015 शालाओं के 4241 शिक्षकों का प्रशिक्षण, 13 जून से प्रारंभ किया जायेगा। यूनिसेफ यह कार्यक्रम नदपसमअमत के साझेदारी के साथ छत्तीसगढ़ में संचालित कर रहा है। कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य किशोर-किशोरी बालक-बालिकाओं को जेण्डर असमानताओं, और शारीरिक क्षमताओं से संबंधित विषयों पर समझ विकसित करने के साथ ही छात्रों में आत्मविश्वास और क्षमता का निर्माण करना है।

प्रशिक्षण के शुभारंभ में राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के डायरेक्टर राजेश सिंह राणा ने कहा कि, सामान्य तौर पर इस विषय पर प्रशिक्षण नहीं होता है। बच्चों को अपने अनुभव से ही इस तरह के विषयों को सीखना पड़ता है। अगर बच्चों से इन विषयों पर चर्चा की जाए तो बच्चों के अंदर सकारात्मकता का विकास होगा। एससीईआरटी ने यह विचार किया है कि 2 जिलों में इस प्रशिक्षण की सफलता के उपरांत इन विषयों को छत्तीसगढ़ के सभी जिलों के शालाओं में लागू करेगा।यूनिसेफ के राज्य प्रमुख श्री जॉब जकारिया ने कहा कि इस विषय पर यूनिसेफ भारत में 8 राज्यों के साथ प्रशिक्षण आयोजित कर रहा है।

उन्होंने कहा कि एक शोध से पता चलता है कि भारत में लगभग 78 प्रतिशत किशोरी बालिकाएं एवं 54 प्रतिशत बालक-बालिकाएं ऐसे हैं जो अपने शरीर की छवि से खुश नहीं है जिसे शारीरिक छवि असंतोष कहा जाता है। शारीरिक छवि को लेकर बच्चों में इस तरह की सोच न केवल उनके आत्म-सम्मान, मानसिक स्वास्थय बल्कि उनकी शिक्षा पर भी प्रभाव डालता है। हमारे समाज में ऐसे बहुत सारी मान्यताएं हैं जो जेंडर भेद को बढ़ावा देती हैं जैसे केवल माता ही एक अच्छी रसोईया होती या माता ही बच्चों को स्नेह करती हैं जबकि एक पिता भी अच्छा खाना बना सकते हैं और वह भी बच्चों से उतना स्नेह कर सकते हैं जितना की एक माता। हमें समाज में इस तरह की जेंडर स्टेरियोटाइप रूढि़बद्ध धारणा को भी बदलना आवश्यक है।
एससीईआरटी के अतिरिक्त संचालक डॉ. योगेश शिवहरे ने प्रशिक्षण में अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि शालाओं या महाविद्यालयों में अतिरिक्त विषयों को बालक एवं बालिकाओं हेतु अलग-अलग रखा जाता है जो कि जेंडर भेद को उजागर करता है। हमें इस तरह के जेंडर भेद को भी सुधारने की आवश्यकता है।

यूनिसेफ के चाइल्ड प्रोटेक्शन की स्पेशलिस्ट सुश्री चेतना देसाई ने कहा कि वर्तमान में बच्चे सोशल मिडिया से भी काफी प्रभावित हो रहे हैं। बच्चों में सोशल मिडिया रू फेसबुक एवं इन्स्टाग्राम जैसे प्लेटफार्म भी बच्चों में अपने बॉडी इमेज को लेकर सवेंदनशील बना रहा है। बच्चे अपने शारीरिक दिखावे और सोशल मिडिया में अपने फालोवर्स को लेकर काफी सवेंद्नशील हो गए हैं।

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