LatestTOP STORIESराष्ट्रीय

सेना से रिटायर्ड डॉग Meru, First AC की सफ़र कर पहुँचा घर

Indian Army Dog:-  हाल ही में इंडियन आर्मी में सेवारत ‘मेरू’ (Meru) नाम का एक कुत्ता रिटायर हुआ. मेरू 9 वर्ष का है और ट्रैकर कुत्ते (Tracker Dog) के रूप में अपनी सेवाएं दे रहा था. रिटायरमेंट के बाद मेरू मेरठ से अपने नए घर जाने के लिए निकला, तो AC पर सफ़र करते उसकी फोटोज़ सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. जिसके बाद इस बात की चर्चा फिर शुरू हो गई कि क्या रिटायर होने के बाद भारतीय सेना कुत्तों को मार देती है, अगर सेना अपने रिटायर कुत्तों को मार देती तो ‘मेरू’ को रिटायर होने के बाद ट्रेन में सफर क्यों कराया.

ट्रेन की फर्स्ट क्लास पर सफ़र करते रिटायर्ड डॉग मेरु

चलिए जानते हैं सेना के साथ जुड़े कुत्तों (Army Dog) की पूरी कहानी:-

पहले ‘मेरू’ की बात

भारतीय सेना में सेवारत मेरू नाम का एक कुत्ता अभी रिटायर हुआ है. मेरू 9 साल का है और ‌रिटायरमेंट होने के बाद 22 आर्मी डॉग यूनिट (22 Army Dog Unit) से मेरठ के लिए ‘ फर्स्ट क्लास एसी ट्रेन में सवार हुआ. जिसकी तस्वीरें खूब वायरल हो रही हैं.

सोशल मीडिया पर सुर्ख़ियाँ बटोरने वाली “मेरु” की तस्वीर

भारतीय सेना में कुत्तों की भर्ती:-
भारतीय सेना में कुत्तों (Dogs in Indian Army) की भर्ती करने के लिए सबसे पहले कुत्ते की बुद्धिमानी, फुर्तीलेपन होने पर भी नजर रहती है. कई सारे मापदंड पूरा होने के बाद ही कुत्तों को भारतीय सेना में सेवा देने के लिए चुना जाता है. जैसे कि अनुकूल स्थिति आने पर कुत्ता कैसा व्यवहार करता है , तथा कुत्ता किस प्रकार से किसी भी परिस्थिति का सामना करता है है. भर्ती के बाद उन्हें खास ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग में उन्हें बम या कोई भी विस्फोटक सूंघने के लिए तैयार किया जाता है. सेना ज्यादातर लैब्राडॉर, जर्मन शेफर्ड और बेल्जियन शेफर्ड नस्ल के कुत्तों को रिक्रूट करती है. इतना ही नहीं इन कुत्तों को रैंक (Job Rank) और नाम भी दिए जाते हैं.

कुत्तों की ट्रेनिंग:-
भारतीय सेना (Indian Army) की तरह सेना में शामिल होने वाले सभी कुत्तों की भी प्रॉपर ट्रेनिंग होती है. कुत्तों का ट्रेनिंग परीक्षा मेरठ के रेमंड एंड वेटरिनरी कॉर्प्स सेंटर एंड कॉलेज (RVC Centre) में होता है. यहां पर सन 1960 में एक कुत्ते का ट्रेनिंग स्कूल का स्थापना किया गया था .

कुत्ते क्या काम करते हैं?
सेना की डॉग यूनिट्स में शामिल कुत्तों को गार्ड ड्यूटी, गश्त, आईईडी विस्फोटक को सूंघना, बारुदी सुरंगों का पता लगाने, ड्रग्स को पकड़ने, कुछ लक्ष्यों पर हमला करने, हिमस्खलन के मलबे की पड़ताल करने और भगोड़े व आतंकियों के छिपने की जगह ढूंढने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है. जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों के तहत तलाशी अभियानों के दौरान एक डॉग स्‍क्‍वायड सैनिकों के साथ रहता है. भारतीय सेना का कैनाइन दस्ता घाटी में किसी भी आतंकवाद विरोधी अभियान में सबसे पहले प्रतिक्रिया देता है.

कुत्तों की यूनिट:-
भारतीय सेना में हाल के समय में लगभग 25 से भी ज्यादा कुत्तों की यूनिट है और 2 हॉफ यूनिट है. सेना के एक फूल यूनिट में कुत्तों की संख्या 24 होती है और कुत्तों की हाफ यूनिट में कुत्तों की संख्या 12 होती है.

कितना वेतन और कब किए जाते हैं रिटायर?
सेना में भर्ती कुत्‍तों को हर महीने कोई वेतन नहीं दिया जाता है. लेकिन, सेना उनके खानपान और रखरखाव की पूरी जिम्‍मेदारी लेती है. सेना में भर्ती कुत्ते की देखरेख का जिम्‍मा उसके हैंडलर (Dog Handler) के पास होता है. कुत्‍ते को खाना खिलाना हो या उसकी साफ-सफाई का ध्‍यान रखना हो, ये सब उसके हैंडलर का जिम्‍मा होता है. वहीं, हर कुत्‍ते का हैंडलर ही सैन्‍य अभियान के दौरान उनसे अलग-अलग काम कराते हैं.

10 से 12 सालों में रिटायर:-
आर्मी की डॉग यूनिट्स में शामिल होने वाले कुत्ते ज्‍वाइनिंग के 10-12 साल बाद सेवानिवृत्‍त हो जाते हैं. वहीं, कुछ कुत्‍ते शारीरिक चोट या हैंडलर की मृत्यु होने या शोर से नफरत बढ़ने से हुई मानसिक परेशानी जैसे कारणों से भी सम्मानजनक तरीके से सेवानिवृत्‍त कर दिए जाते हैं. सेना अपने कुत्‍तों को अलग-अलग क्षेत्र में सम्मानित भी करती है.

क्या रिटायरमेंट के बाद गोली मार दी जाती है?
आपको बता दें कि सेवा समाप्त होने के बाद कुत्तों को अब गोली नहीं मारी जाती है. यह पहले होता था जब कुत्तों को सेना से सेवानिवृत होने के बाद गोली मार दी जाती थी.

पहले, क्यों मारी जाती थी गोली?
सेना के कुत्तों को गोली मारने को लेकर बताया जाता है कि ऐसा देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया जाता था. सेना के लोगों को डर रहता था कि कहीं रिटायरमेंट के बाद कुत्ता गलत हाथों में पड़ गया तो कोई उनका गलत इस्तेमाल कर सकता है. इसलिए इन एक्सपर्ट कुत्तों को गोली मार दी जाती थी. साथ ही इन कुत्तों के पास आर्मी के सेफ और खूफिया ठिकानों के बारे में भी पूरी जानकारी होती थी. जिसका कोई गलत इस्तेमाल कर सकता था. एक और  वजह बताई गई कि उस समय उनके देखभाल करने के लिए उचित लोग नहीं मिलते थे या फिर डॉग्स वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन (DWO) भी उन्हें भारतीय सेना जैसा विभिन्न सुविधा देने में समर्थ या काबिल नहीं थे.

2015 के बाद बदला नियम:-
द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार यह तथ्य गलत है. रिपोर्ट के अनसुार साल 2015 में सरकार की मंजूरी के बाद से सेना ने जानवरों की इच्छामृत्यु बंद कर दी गई है. यानी रिटायरमेंट के बाद सेना से रिटायर कुत्तों को गोली नहीं मारी जाती है, लेकिन सिर्फ उन्ही कुत्तों को इच्छामृत्यु दी जाती है, जो किसी बीमारी से पीड़ित होते हैं.

अब कुत्तों को रखा जाता है जीवित:-
अब कुत्तों को रिटायरमेंट के बाद ऐसे लोगों को दे दिया जाता है जो उसका देखभाल अच्छे से कर सके. उनकी सारी सुविधाओं का पूर्ति कर सके. इसके लिए उन सभी लोगों को भारतीय सेना के बॉन्ड पेपर पर हस्ताक्षर करना होता है कि इन कुत्ते देखभाल करेंगे और उसे किसी सुविधा का कमी नहीं होने देंगे.

‘मेरू’ कुत्ते की हो गई सेना से विदाई:-
22 आर्मी डॉग यूनिट से आर्मी ट्रैकर डॉग मेरु रिटायरमेंट के बाद पर मेरठ में अपने बाकी दिन रिमाउंट एंड वेटरनरी कॉर्प्स (RVC) सेंटर के डॉग्स रिटायरमेंट होम में बिताएगा. रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में सर्विस डॉग को उनके संचालकों के साथ एसी फर्स्ट क्लास में यात्रा करने की इजाजत दी है. देश की सेवा में शामिल कुत्ते आमतौर पर लगभग 8 से 10 वर्षों की सेवा के बाद उन्हें संचालकों या अन्य सैन्य कर्मियों द्वारा गोद ले लिया जाता है. ऐसे कुत्तों के लिए बनाए गए घरों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा भी इस तरह के कुत्तों की देखभाल की जाती है.

सोशल मीडिया X पर साझा की गई जानकारी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Follow Us

Follow us on Facebook Follow us on Twitter Subscribe us on Youtube