संविदाकर्मियों की सुनवाई और प्रक्रिया बिना बर्खास्तगी अनुचित, आरोपों की निष्पक्ष जांच आवश्यक
बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि संविदा कर्मचारियों की बर्खास्तगी के लिए भी प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों का पालन करते हुए सुनवाई का अवसर देना आवश्यक है। जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की सिंगल बेंच ने ग्राम रोजगार सहायक के बर्खास्तगी आदेश को खारिज करते हुए कहा कि संविदा रोजगार में भी कदाचार के आरोपों की उचित जांच और निष्पक्ष सुनवाई आवश्यक है। प्रकरण के अनुसार याद दास साहू को 2016 में संविदा के आधार पर मनरेगा के तहत ग्राम रोजगार सहायक (जीआरएस) के रूप में डोंगरगांव क्षेत्र में नियुक्त किया गया था।
संतोषजनक कार्य के कारण हर वर्ष उनका कार्यकाल बढ़ाया गया। दिसंबर 2022 में, कुछ स्थानीय अधिकारियों और विधायक दलेश्वर साहू ने याद दास पर व्यवहार संबंधी मुद्दों और पेशेवर कदाचार का आरोप लगाया। जांच शुरू की गई, लेकिन याचिकाकर्ता के कई अनुरोधों के बावजूद न शिकायतों और न ही ही जांच रिपोर्ट उनको दी गई। बाद में उस पर कुछ अनिवार्य लक्ष्यों और कार्यों को पूरा न करने का आरोप लगाया गया।
आरोपों का जवाब देने के बाद भी बिना जांच कार्रवाई
कर्मचारी को कई कारण बताओ नोटिस जारी किए गए, जिसमें खराब प्रदर्शन और कदाचार का आरोप लगाया गया। जवाब दिए जाने के बावजूद उनको दूसरी पंचायत में स्थानांतरित कर दिया गया। एक महीने बाद, 23 जून, 2023 को, बिना किसी नोटिस या औपचारिक जांच के सेवाएं समाप्त कर दी गईं। व्यथित होकर साहू ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सेवा समाप्ति आदेश को चुनौती दी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि संविदा नियुक्ति में सर्विस की सुरक्षा नहीं है, फिर भी किसी तरह के कलंकपूर्ण आरोप में सेवा समाप्ति के लिए निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। कर्मचारी को खुद का बचाव करने का अवसर देना चाहिए।
सभी लाभों के साथ बहाल करें, जांच को स्वतंत्र
कोर्ट ने यह भी पाया कि दिसंबर 2022 की जांच रिपोर्ट में साहू को दोषमुक्त कर दिया गया। फिर भी बिना किसी अतिरिक्त सबूत के कर्मचारी पर फिर से वही आरोप लगाए गए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कदाचार के आधार पर बर्खास्तगी एक दंडात्मक कार्रवाई है, और इसके लिए प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों का पालन करना आवश्यक है।
बार-बार अनुरोध के बावजूद साहू को शिकायतों या जांच निष्कर्षों की प्रतियां उपलब्ध नहीं कराई गईं। इससे बर्खास्तगी मनमाना और अवैध हो गई। कोर्ट ने अधिकारियों को नए सिरे से जांच करने की स्वतंत्रता देते हुए याचिकाकर्ता को सभी परिणामी लाभों के साथ बहाल करने का निर्देश दिया।