बगैर मास्क के कार्यवाही : शोधार्थियों ने तैयार किए फेस मास्क डिक्टेटर…
कोविड-19 के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए मास्क की भूमिका अहम मानी जा रही है। सरकार ने भी घरों से बाहर निकलने पर मास्क लगाना अनिवार्य किया है। इसके बावजूद लोग लापरवाही बरत रहे हैं। महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एमडीयू) की कंप्यूटर साइंस एंड एप्लीकेशन विभाग की शोधार्थी छाया गुप्ता ने फेस मास्क डिटेक्शन मॉडल इजाद किया है। भीड़ वाले इलाकों में मास्क न पहनने वालों की निगरानी इस मॉडल से की जा सकती है।
आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग पर आधारित इस मॉडल का नाम दिया गया है, कोरोना मास्क- फेस मास्क डिटेक्टर। बगैर मास्क लगाए डिटेक्टर के आगे से गुजरने पर अलार्म बजेगा। कंट्रोल रूम में भी नोटिफिकेशन चला जाएगा। शोधार्थी ने बताया कि करीब एक सप्ताह के गहन अध्ययन के बाद मॉडल के लिए एल्गोरिदम (कंप्यूटर प्रोग्रामिंग) तैयार किया है।
चेहरे की पहचान के लिए कॉन्वोल्यूशन न्यूरल नेटवर्क को एल्गोरिदम का आधार बनाया गया है। न्यूरल नेटवर्क चेहरे को एक इमेज की तरह रीड करेगा। अच्छी तरह स्कैनिंग के बाद विद मास्क और विदाउट मास्क का नोटिफिकेशन देगा। मास्क न लगाने वाले व्यक्ति के चेहरे पर विदाउट मास्क के मैसेज के साथ लाल रंग का स्क्वायर स्क्रीन पर दिखाई देगा। वहीं मास्क डिटेक्ट होने पर न तो अलार्म बजेगा न ही नोटिफिकेशन जाएगा।
शोधार्थी ने बताया कि मॉडल के लिए भारी-भरकम उपकरण या अलग से कंट्रोल रूम बनाने की जरूरत नहीं है। सीसीटीवी (क्लोज्ड सर्किट टेलीविजन) में प्रोग्राङ्क्षमग फीड की जा सकती है। भीड़ वाले सार्वजनिक स्थान, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, बाजारों में एंट्री व एग्जिट गेट के साथ ही अन्य स्थानों पर भी बहुत कम खर्च पर तकनीक इस्तेमाल की जा सकती है।
” लॉकडाउन को चरणबद्ध तरीके से खोला जा रहा है। संक्रमण को नियंत्रित करने में मास्क लगाना बेहद जरूरी है। इसी से फेस मास्क डिटेक्शन मॉडल बनाने का आइडिया आया। रिसर्च सुपरवाइजर के मार्गदर्शन में एल्गोरिदम पर काम करना शुरू किया। इसे किफायती व सरल बनाने पर जोर रहा। मॉडल को अन्य जरूरतों के अनुसार भी विकसित किया जा सकता है।
” कोरोना संकट में फेस मास्क डिटेक्शन तकनीक कारगर साबित होगी। शोधार्थी ने घनी जनसंख्या को ध्यान में रखकर मॉडल तैयार किया गया है। लॉकडाउन खुलने पर लोगों ने महामारी को थोड़ा हल्के में भी लिया है। मास्क लगाने में कोताही बरती जा रही है। शोधार्थी ने सही दिशा में कदम उठाया है। जनकल्याण के लिए इस तरह के मॉडल पर काम करने की जरूरत है।