कहां गई नन्ही सी जान गौरैयां
- अनाज में कीटनाशकों के इस्तेमाल, आहार की कमी और इंसानों द्वारा ढाए जा रहे जुर्म की भेंट चढ़ चुकी गौरैया अब सिर्फ कहानी बनकर सिमट जाएगी।
- चीन सरकार ने वर्ष 1958 में गौरैया मारने का फरमान जारी किया क्योंकि उनको लगता था गौरैया इंसानों का खाना चुराती हैं और करोड़ों गौरैया मार गिराए नतीजन वर्ष के अंत तक किसानों के फसलों में कीटों का प्रकोप बढ़ने से उत्पादन्य में भारी गिरावट हुई और भुखमरी की शुरुवात हो गई, सरकार समझ चुकी थी उनका ये फरमान खाद्यान संकट ला सकता है और फिर फैसला किया गया की गौरैया दूसरे देशों से लाया जाय।
- यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढि़यों को यह देखने को ही न मिले।
- गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने जाए जहा वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सके।
- भारत सरकार ने भी इनकी घटती संख्या को देखते हुए 2010 से हर वर्ष 20 मार्च को दुनिया में विश्व गौरैया दिवस मनाने की शुरुआत की गई. गौरैया संरक्षण व गौरैया बचाओ अभियान के तहत वर्ष 2012 में इसे दिल्ली और वर्ष 2013 में इसे बिहार का राजकीय पक्षी घोषित किया गया लेकिन ये सिर्फ सरकारी कागचों तक सिमट कर रह गया।
ये नन्हीं सी जान प्यासे भटकती है लेकिन पानी का बूंद तक नसीब नही होता, यकीन मानिए इनके नष्ट होते ही इंसानों पर संकट के बादल आ आयेंगे।