सरकारी अस्पतालों में इलाज की गारंटी नहीं, निजी में नकद देने पर ही इलाज, असर-जिले के 2 लाख से अधिक लोग कार्ड से वंचित
सितंबर 2018 से लेकर अब तक यानी 5 साल में जिले के 37 सरकारी अस्पतालों में 22 हजार 860 और 7 निजी अस्पतालों में 31 हजार 942 लोगों ने आयुष्मान कार्ड के माध्यम से इलाज कराया है। यह खुलासा स्वास्थ्य विभाग की ऑडिट रिपोर्ट में हुआ है। जबकि 50% मरीज दूसरे जिले के अस्पतालों के भरोसे रहे। वहीं वर्तमान में जिले के 2 लाख 23 हजार लोगों ने आयुष्मान कार्ड ही नहीं बनवाया है।
आईएमए अध्यक्ष डॉ. प्रदीप जैन ने बताया कि नियमों का रोड़ा, सामान्य बीमारियों को पैकेज से नहीं हटाते तो निजी अस्पतालों में इलाज करवाने वालों की संख्या 31 हजार के बजाय 60 हजार से ज्यादा रहती। पहले जब नियम की बंदिशें नहीं थी तो हर साल 12 हजार मरीज निजी अस्पतालों में इलाज करवाते थे। अब अधिकांश मरीजों को पैसा देकर इलाज कराने की नौबत आ रही है। इसलिए दूसरे जिले के अस्पताल में जा रहे है।
मलेरिया, टायफाइड, उल्टी-दस्त होने पर पहले लोग कार्ड पकड़कर आते थे और इलाज हो जाता था, लेकिन अब पैसा देना पड़ रहा है। यहां तक निजी अस्पतालों में मोतियाबिंद ऑपरेशन, दांत संबंधित इलाज पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।
जिले के यह 7 निजी अस्पताल पंजीकृत हैं
योजना के तहत पंजीकृत निजी अस्पतालों में नरसिंह, उम्मीद, स्वास्थ्य संचय, कमला, पुष्पा, शहीद, शिवालय हॉस्पिटल शामिल है। आयुष्मान कार्ड से सामान्य, सिजेरियन प्रसव, मोतियाबिंद ऑपरेशन, दांतों का ऑपरेशन, नसबंदी सहित 114 बीमारियों का इलाज आयुष्मान कार्ड होने के बाद भी निजी अस्पतालों में नहीं होगा। यहां तक उल्टी, दस्त, मलेरिया, टाइफाइड सहित सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए भी सरकारी अस्पताल के भरोसे मरीजों को रहना होगा क्योंकि सरकार ने निजी अस्पतालों से पैकेज हटा दिया है। शहीद अस्पताल में ही कुछ बीमारियों का पैकेज शामिल किया गया है। जबकि जिले के अधिकांश निजी अस्पतालों में सामान्य बीमारियों के पैकेज को हटा देने से मरीजों को नकद राशि देना पड़ रहा है, तब इलाज हो पा रहा है। वहीं अप्रैल से लेकर अब तक इलाज के एवज में निजी अस्पताल प्रबंधन को साढ़े 5 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं हो पाया है। संचालन में परेशानी हो रही है।
दावा- कुल 5 लाख का पैकेज, दूसरी ओर बंदिशें
आयुष्मान कार्ड जारी होने के बाद एक ओर दावा किया जा रहा है कि विशेष प्राथमिकता वालों को 5 लाख रुपए तक व बाकी वर्ग के लोगों का 50 हजार रुपए तक इलाज की सुविधा मिलेगी। लेकिन निजी अस्पतालों में बंदिशें लगा देने से वास्तविक कुछ और है। आलम यह है कि ग्रामीण क्षेत्र में संचालित सरकारी अस्पतालों में बीमारियों का इलाज होना मुश्किल है, क्योंकि संसाधन व विशेषज्ञ डॉक्टर ही नहीं है। आलम यह है कि निजी अस्पतालों में अधिकांश बेड खाली है। पहले सामान्य बीमारियों का इलाज होने से ज्यादा मरीज पहुंचते थे। कार्ड देखने के बाद प्रबंधन की ओर से भर्ती किया जाता था।
हकीकत- पैसे देकर इलाज करवाने को मजबूर हैं मरीज
केंद्र शासन की ओर से जारी आयुष्मान कार्ड होने के बाद भी जिले के पंजीकृत निजी अस्पतालों में सिजेरियन(ऑपरेशन) प्रसव नहीं करवा सकेंगे। अगर करवाएंगे तो नकद राशि देना पड़ेगा। इस स्थिति में 13 से 25 हजार रुपए तक खर्च करना पड़ेगा। निजी अस्पताल प्रबंधन अपने हिसाब से चार्ज तय कर कई जांच के नाम पर बिल जारी करते है। सामान्य प्रसव के बाद अगस्त माह से सिजेरियन प्रसव के पैकेज को केंद्र शासन ने हटा दिया है। हालांकि सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने चार्ज नहीं देना पड़ेगा, यहां कार्ड मान्य रहेगा। लेकिन अधिकांश लोग इमरजेंसी में निजी अस्पतालों में ही पहुंचते है।