छत्तीसगढ़ में धान की अनेक किस्मों में कैंसररोधी गुण हैं, जिनकी पहचान कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा की गई
रायपुर छत्तीसगढ़ में धान की अनेक किस्मों में कैंसररोधी गुण हैं, जिनकी पहचान कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा की गई है। इन किस्मों का संरक्षण और संवर्धन कर इनके उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए तथा इनका उपयोग दवाओं के निर्माण में किया जाना चाहिए। जैव विविधता का संरक्षण कर किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं।
यह बातें इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (आइजीकेवी) के कुलपति डा. गिरीश चंदेल ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय कृषि मड़ई एग्री कार्नीवाल के ‘जैव विविधता संरक्षण एवं कृषक प्रजातियों का पंजीयन कार्यशाला एवं प्रदर्शनी” में मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित करते हुए कही।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डा. जे.सी. राणा ने कहा कि उनकी संस्था सम्पूर्ण भारतवर्ष में कृषि फसलों एवं औषधीय फसलों में जैव विविधता संरक्षण एवं संवर्धन का कार्य कर रही है। पौध किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के संयुक्त पंजीयक डा. दीपल राय चौधरी ने बताया कि पीपीवीएफआर के तहत चार मुख्य बिन्दुओं के माध्यम से जीआइ टैग की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, नई दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. राकेश भारद्वाज ने इस अवसर पर कहा कि आज नवीन विकसित फसल प्रजातियों की उपज अधिक मिल रही है, लेकिन उनमें पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है, जबकि परंपरागत किस्मों में पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। उन्होंने कहा कि भोजन से मिलने वाली पोषकता में कमी के कारण आज तरह-तरह की व्याधियां हो रही हैं।
उन्होंने कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि नवीन प्रजातियों के विकास में परंपरागत किस्मों के पोषक गुणों को शामिल किया जाए। इस अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी में छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए किसानों ने उनके द्वारा संरक्षित विभिन्ना फसलों की परंपरागत किस्मों को प्रदर्शित किया।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के जैव विविधता परियोजना प्रमुख डा. दीपक शर्मा ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय में वर्ष 2015-16 में किसानों के किस्मों का रजिस्ट्रेशन प्रारंभ किया गया। अभी तक कुल 1218 प्रजातियों को जीआइ टैग मिल चुका है।
धान में बस्तर और सरगुजा अंचल में जैव विविधता बहुत अधिक पाई गई है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में जैव विविधता में छत्तीसगढ़ राज्य दूसरे स्थान पर है। छत्तीसगढ़ के 1785 कृषकों ने कुल 68 फसलों को चिन्हित कर जीआइ टैग के लिए पंजीयन करवाया गया था। अभी तक धान की 339 किस्मों, सरसो की तीन व टमाटर की एक किस्म समेत 343 किस्मों को जीआइ टैग मिल चुका है।