अमरीकी युवा बस्तर की संस्कृति को ले जाएंगे सात समंदर पार, कल्चर कनेक्शन संगठन पर कर रहे रिसर्च…
बस्तर। बस्तर में शांति बहाली के प्रयासों के बीच एक और बड़ी खबर सामने आई है। दरअसल अमरीका से पहुंचे युवाओं का एक ग्रुप यहां की लोक संस्कृति पर अध्ययन कर रहा है। यह ग्रुप यहां की समृद्ध संस्कृति को समझने के बाद उसे दुनिया तक लेकर जाएगा। अमरीकी के कल्चर कनेक्शन संगठन ने बस्तर को वैश्विक मंच पर ले जाने की ठानी है। बोस्टन अमरीकी के युवा जोशुआ सिम्स और डियोन जेम्स की टीम शनिवार को इस रिसर्च प्रोजेक्ट के सिलसिले में बस्तर के प्रवास पर पहुंची।
कल्चर कनेक्शन इस प्रोजेक्ट के तहत बस्तर के पर्यटन और संस्कृति को नई ऊंचाई देने जा रहे हैं। इससे यहां अधिक से अधिक विदेशी मेहमान भी पहुंचेंगे। इससे बस्तर के आदिवासियों को आर्थिक रूप से मदद मिलेगी। एक सप्ताह तक बस्तर में रहकर इन अमेरिकी युवाओं का दल बस्तर में आदिवासियों के बीच उनके रहन-सहन से लेकर यहां की कला एवं संस्कृति का अध्ययन करेगा।
मुख्य उद्देश्य बस्तर के कल्चर को बढ़ावा देना
बस्तर के प्रवेश द्वार केशकाल टाटामारी के बाद बस्तर पहुंचे कल्चर कनेक्शन प्रोजेक्ट के सह संस्थापक जोशुआ सिम्स ने बताया कि उनकी टीम बस्तर में प्राचीन कल्चर और खानपान, रहवास और कला को नजदीक से देख समझकर अपने संस्था सीपीसी के माध्यम से अमरीका में प्रस्तुत करने वाले हैं। इस संस्था का उद्देश्य बस्तर की आदिम जनजाति और इसके रहन सहन, कला, संस्कृति और अन्य गतिविधियों को दुनिया में पहुंचाकर बढ़ावा देते हुए आदिवासियों की मदद करना है।
बस्तर में बहुआयामी व्यक्तियों से करेंगे मुलाकात
वर्तमान में जोशुआ बस्तर में शकील रिज़वी बस्तर ट्राइबल होमस्टे संचालक और दीप्ति ओगरे संस्थापक सुरुज फाउंडेशन के सहयोग से इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिए बस्तर प्रवास पर हैं। इस प्रवास के मध्य वे ऐसे बहु आयामी व्यक्तियों से मिलेंगे जो सामाजिक विकास और उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं या सामाजिक समरसता स्थापित करने हेतु प्रयत्नशील हैं।
लाल आतंक का दायरा सिमटा तो होने लगी पूछ-परख
बस्तर में लाल आतंक की वजह से यहां लोग आने से बचते थे। जो विदेशी टूरिस्ट आते भी थे तो वे शहरी क्षेत्र के आसपास ही भ्रमण करते थे लेकिन अब शांति बहाली अभियान के बीच हालात बदले हैं। अब यहां लोग आसानी से प्रभावित इलाकों में जाकर भी अध्ययन कर रहे हैं। अमरीका से पहुंचा युवाओं का दल भी अंदरूनी इलाकों के गांवों में जाने की तैयारी में है। ताकि बस्तर को बेहतर तरीके से समझ सकें।