रोचक तथ्य

छत्तीसगढ़ में जहरीले सांपो की संख्या बहुत कम.. 26 प्रजातियों में सिर्फ छह जहरीले…

रायपुर। छत्तीसगढ़ में सांपों की 26 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमेे से सिर्फ छह जहरीली हैं, बाकी 20 प्रजातियों में जहर नहीं होता। यहां एक विशेष दुर्लभ सांप की प्रजाति ग्रीन कीलबैक स्नेक (हरा ढोरिया) भी है। प्रदेश में वर्ष 2014 में पाया गया था। बारिश और गर्मी में सांप बिलों से बाहर आ जाते हैं। हाल में ही मुख्यमंत्री के सरकारी आवास से 13 सांप पकड़े गए थे। इनमें धामन और करैत जैसे जहरीले सांप भी थे। प्रदेश में सर्पदंश से मौत का आंकड़ा भी बड़ा है। दरअसल, हमने ही सांपों के ठिकानों पर कब्जा कर लिया है, इसलिए वे वहीं निकलते हैं, जहां पहले से रहते हैं।

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वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि इनका हमारे जीवन में काफी महत्व है। वे कीड़े-मकोड़े और चूहों की आबादी को नियंत्रित करते हैं। किसानों के तो सबसे अच्छे दोस्त हैं, क्योंकि 20 फीसद फसल को चूहे नुकसान पहुंचाते हैं और चूहे सांपों का आहार हैं। सच तो यह है कि उनके बिना हम कीटों और चूहों से परेशान हो जाएंगे। इतना ही नहीं सांप संकेतक प्रजाति है। आबोहवा बदलने पर सबसे पहले वही प्रभावित होते हैं। लिहाजा उनकी मौजूदगी हमारी मौजूदगी को सुनिश्चित करती है।

सांप तभी आक्रामक होते हैं, जब उनके साथ छेड़छाड़ की जाए या हमला किया जाए। हालांकि, पहले वे हमेशा आक्रमण करने की जगह भागने की कोशिश करते हैं। बिलासपुर के कई युवा सांपों के संरक्षण की अच्छी पहल कर रहे हैं। वे लोगों के घरों में निकलने वाले सांपों को पकड़कर सुरक्षित ठिकानों पर छोड़ रहे हैं। साथ ही ग्रामीणों को भी इस बारे में जागरूक कर रहे हैं।

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जशपुर जिले के फरसाबहार तहसील के तपकरा की पहचान नागलोक के रूप में है। इलाके की नमीयुक्त जलवायु और भुरभुरी मिट्टी केसाथ यहां बड़ी संख्या में चूहों की मौजूदगी उनको अनुकूलन प्रदान करती है। यहां किंग कोबरा, बैंडेड करैत, रसैल वाइपर और स्केल्ड वाइपर भी हैं। 90 के दशक में यहां स्नैक पार्क बनाने की योजना बनाई गई थी, लेकिन सरकार से स्वीकृति के अभाव में लंबित है।

यहां स्नेक पार्क के लिए बना भवन खाली हैै। पार्क बनने से भवन का उपयोग सर्प ज्ञान केंद्र के रूप में करने की योजना वन विभाग ने तैयार की थी। इसके तहत भवन में सर्प से संबंधित वैज्ञानिक पहलुओं को प्रदर्शित करने की थी, ताकि सांपों से जुड़े अंधविश्वास को दूर किया जा सके। योजना तैयार होने के बाद एक-दो साल तक नागपंचमी केअवसर पर वन विभाग ने विशेषज्ञ और जानकारों के साथ मिल कर इस दिशा में प्रयास भी किया।

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मगर, मामला फिर अधर में लटक गया है। यह केंद्र सांपों पर अध्ययन में तो महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। पर्यटन का केंद्र भी बन सकता है। आशा की जानी चाहिए कि सरकार स्नेक पार्क के लिए न केवल स्वीकृति प्रदान करेगी बल्कि राशि भी जारी करेगी।

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