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सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण पर स्टे देने से इनकार, एक याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ सरकार को भेजा अवमानना नोटिस

छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण प्रावधानों पर संकट गहरा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को विद्या सिदार की विशेष अनुमति याचिका पर स्टे देने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने कहा, फिलहाल बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले पर स्टे ऑर्डर नहीं दिया जा सकता। उच्च न्यायालय ने काफी विचार के बाद दो अधिनियमों को अलग (अपास्त) किया है। इसलिए इस पर पर्याप्त सुनवाई होने तक सरकार को विधि-सम्मत कार्रवाई करनी ही होगी।

इसके बाद मामले में एक याचिकाकर्ता योगेश ठाकुर ने राज्य सरकार को अवमानना का लीगल नोटिस भेजा है। अधिवक्ता जॉर्ज थॉमस के जरिये यह लीगल नोटिस मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव और विधि एवं विधायी कार्य विभाग के सचिव काे भेजा गया है। इसमें साफ किया गया है कि बिलासपुर उच्च न्यायालय के 19 सितम्बर के फैसले से फिलहाल नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो गया है। सामान्य प्रशासन विभाग और दूसरे विभागाें को तत्काल बताना होगा कि राज्य सरकार की ओर से कोई नया अधिनियम, अध्यादेश अथवा सर्कुलर जारी होने तक लोक सेवाओं एवं शैक्षणिक संस्थाओं में कोई आरक्षण नहीं मिलेगा।

याचिकाकर्ता का कहना है कि अगर एक सप्ताह के भीतर सरकार ने ऐसा नहीं किया तो वह न्यायालय की अवमानना का केस दायर करेंगे। योगेश ठाकुर की ही याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनाें राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। इस नोटिस की वजह से राज्य सरकार की स्थिति प्रतिवादी की हो गई है।

इस नोटिस में याचिकाकर्ता की ओर से सरकार पर भ्रमित करने का आरोप लगाया गया है। कहा गया, 29 सितम्बर को सामान्य प्रशासन विभाग ने उच्च न्यायालय के फैसले की कॉपी सभी विभागाध्यक्षों को कार्रवाई के लिए भेजी। इसके साथ विधिक स्थिति का उल्लेख नहीं किया। इसकी वजह से अलग-अलग विभाग इसकी अलग-अलग व्याख्या कर रहे हैं। इससे प्रशासन में भ्रम की स्थिति बन गई है। सरकार आगे बढ़कर इसे स्पष्ट भी नहीं कर रही है।

भ्रम दूर करने की भी कोशिश की है

इस नोटिस के जरिये याचिकाकर्ता के वकील ने भ्रम दूर करने की भी कोशिश की है। कहा गया है, संभवत: संविधान पीठ के सुप्रीम कोर्ट ऍडवोकेट ऑन रिकॉर्ड असोसिएशन बनाम भारत संघ मामले में आए फैसले की वजह से यह भ्रम पैदा हुआ है। इसमें कहा गया है कि अपास्त किए गए प्रावधानों से ठीक पहले की स्थिति बहाल हो जाएगी। लेकिन संविधान पीठ ने ही बी.एन. तिवारी बनाम भारत संघ के मामले में निर्वचन का सामान्य सिद्धांत पेश किया है। इसके मुताबिक किसी कानून में संशोधन होने से पुराना कानून समाप्त हो जाता है। ऐसे में अगर संशोधन कानून रद्द होगा तो उससे पहले वाला कानून पुनर्जीवित नहीं होगा। यानी 2011 का आरक्षण कानून रद्द होने से उसके पहले वाली स्थिति बहाल नहीं होगी। यह स्थिति अपवादों में भी नहीं आती।

इस बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया है कि राज्य सरकार ने बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर दी है। इस फैसले को चुनौती देने की घोषणा 19 सितम्बर को ही हो गई थी। एक महीने बाद मुख्यमंत्री ने कहा, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के आरक्षण हितों के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा 58% आरक्षण को निरस्त किये जाने के खिलाफ हमने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। यह लड़ाई पूरी तल्लीनता, तन्मयता और ईमानदारी से लड़ी जाएगी।

आदिवासी आरक्षण पर छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस:SLP आवेदन पर सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने मांगा जवाब, चार सप्ताह बाद फिर सुनवाई

akhilesh

Chief Reporter

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