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कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय आरक्षित वर्गों के छात्रों का बना कब्रगाह

रायपुर.  कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर में एक बार फिर आदिवासी शोधछात्र से भेदभाव का मामला प्रकाश में आया है.मिली जानकारी के अनुसार जनसंचार विभाग में शोध कार्य कर रहे अकेले बस्तर के आदिवासी शोधार्थी कुमार सिंह तोप्पा का पी-एच.डी. डिग्री से वंचित करने का गाइड ने पूरी तरह से ठान लिया है, और इस आदिवासी शोधार्थी का फाइनल मौखिकी नहीं कराया जा रहा है जिसकी शिकायत खुद शोधार्थी कुमार सिंह तोप्पा ने विश्वविद्यालय के कुलपति को किया है,जिसकी कापी राज्यपाल,मुख्यमंत्री ,उच्च शिक्षा मंत्री को भेजा गया है.

शोधार्थी ने अपने शिकायत पत्र में लिखा है कि उसे आदिवासी होने के कारण पीएचडी जैसे दुनिया के सबसे बड़े डिग्री से महरूम किया जा रहा है. बताया जाता है कि इस आदिवासी शोधार्थी के अलावा अन्य शोधार्थियों ने जो कि बाद में अपनी थीसिस जमा किया है. उन सभी का पीएचडी का फाइनल मौखिकी कराकर पीएचडी अवार्ड करा दिया जाएगा साथ ही इन सभी को पीएचडी की डिग्री 30 मई को होने वाली पांचवें दीक्षांत समारोह में दिया जाएगा.
ज्ञात हो कि श्री कुमार सिंह तोप्पा की पीएचडी का पंजीयन 2014 को यूजीसी के पीएचडी अधिनियम 2009 के तहत हुआ है, विगत आठ वर्षों से श्री टोप्पा के शोध निर्देशक डॉ शाहिद अली के द्वारा पीएचडी की थीसिस जमा नहीं कराया गया और दीक्षांत समारोह को बदनाम करने के लिए अपने ही शोधार्थी कुमार सिंह तोप्पा से विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ शिकायत कराया गया है.

अकादमिक क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों को ज्ञात है कि यूजीसी की पीएचडी अधिनियम 2009 के अनुसार पीएचडी जमा करने की न्यूनतम अवधि 02 वर्ष एवं अधिकतम अवधि 04 वर्ष थी. इन नियमों को ताक में रखते हुए शोधार्थी के शोध निर्देशक डॉ. शाहिद अली द्वारा विगत आठ वर्षों से शोधार्थी को पीएचडी की डिग्री से वंचित रखा गया है, यूजीसी के नई गाइडलाईन के माने तो पीएचडी शोधकार्य की न्यूनतम अवधि 03 वर्ष और अधिकतम अवधि 05 वर्ष है.
नियमत:शोधार्थी श्री कुमार एवं दूसरे शोधार्थियों का पीएचडी अब तक खारिज हो जाना चाहिए था.

चूंकि विश्वविद्यालय अपने फर्जीवाड़े एवं नियमों के अनदेखा के विश्वविख्यात है. जहाँ 2010 एवं 2014 में पंजीकृत हुए ज्यादातर शोधार्थी मीडिया के संस्थानों में नियमित मीडियाकर्मी के रूप में व शासकीय संस्थानों में नियमित शासकीय कर्मी के रूप कार्यरत रहें हैं. यूजीसी के अधिनियम के अनुसार पीएचडी कोर्स वर्क के दौरान शोधार्थी किसी भी संस्थान में कर्मचारी/अधिकारी के रूप कार्य नहीं कर सकते. इन नियमों को धता बताते हुए डॉ.शहीद अली द्वारा पीएचडी की डिग्री बांटी जा चुकी है. जिसकी शिकायत कुलाध्यक्ष एवं राज्यपाल महोदया के समक्ष विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया है जिस पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई है. शोधार्थी श्री कुमार सिंह तोप्पा का उत्पीड़न का मामला नया नहीं है, इसके पूर्व भी दलित शोधार्थी श्री कमल ज्योति जाहिरे के साथ डॉ. शाहिद अली एवं उनके गूर्गो द्वारा मारपीट कर शोधार्थी कमल का आत्मबल गिरागर पीएचडी शोधकार्य से वंचित किया गया. जिसका केस अभी भी न्यायालय में चल ही रहा है. उक्त दोनों शोधार्थी मूलतः छत्तीसगढ़ के निवासी है.

देश व प्रदेश के मीडिया शिक्षक जानते हैं कि डॉ.शाहिद अली पूरी तरह से फर्जी डिग्री के आधार पर कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर में विभिन्न पांच कानूनी धाराओं जिसमें 420, 467, 468, 471 और 34 भादस के तहत दंडनीय अपराध माना है,अपराध पंजीकृत होने के बाद भी जमानत पर रहते हुए विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर बड़े ही दबंगई के साथ पदस्थ हैं. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए नियमत: शोधार्थी के साथ न्याय किया जाए वहीँ दूसरी तरफ फर्जी डिग्री के आधार पर एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर नियुक्त डॉ.शाहिद अली के प्रमाणपत्रों का विधिवत जांच कराकर तत्काल बर्खास्त करते हुए 420 के जुर्म में जेल भेजा जाए जिससे विश्वविद्यालय को शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों का कब्रगाह बनने से रोका जा सके.

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