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रेंगकर घर के काम करती हूं, लेकिन सपने देखने बंद नहीं किए हैं..रुचिता साहूकारी

शिक्षा हमारा मौलिक अधिकार है लेकिन स्पेशल नीड्स बच्चों के लिए अलग स्कूल, हमें और अलग-थलग कर देते हैं। कोई हमसे भी तो पूछे कि हम विशेष स्कूलों में जाना चाहते हैं या ‘सामान्य’ बच्चों के स्कूल में ही पढ़ना चाहते हैं।

दुर्लभ बीमारी है, सपने आसान
ये शिकायत है ओस्टीओजेनेसिस इम्पर्फिक्टा नाम की बीमारी से जूझ रहीं आंध्रप्रदेश की रुचिता साहूकारी की। बातचीत में रुचिता कहती हैं, ‘ओस्टीओजेनेसिस इम्पर्फिक्टा दुर्लभ जेनेटिक बीमारी है, जिसमें हड्डियां नाजुक होती हैं और आसानी से टूट सकती हैं। बचपन से मैंने इस बीमारी की वजह से बहुत कष्ट झेले। पर सपने देखने बंद नहीं किए।

जैसे-जैसे बड़ी होती गई, वैसे-वैसे अपने जरूरी काम भी खुद नहीं कर पाती। घर में किसी की मदद लेनी पड़ती है। अब रेंगकर अपने काम करती हूं। जब बाहर जाना होता है तो व्हीलचेयर यूज करती हूं।

जीने का मकसद नहीं मालूम था
इस बीमारी से इतनी परेशान हो गई कि कई बार मरने की भी सोची क्योंकि ये समझ ही नहीं आ रहा था कि अब जीना क्यों हैं। जीने का उद्देश्य क्या है। फिर खुद को ही बुलंद करते हुए कुछ संस्थाओं से मिली।

स्पेशल चाइल्ड पर नहीं है ध्यान
अपनी मेंटल कंडीशन बताई। उन्होंने मुझे पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया। जब पढ़ने का मन हुआ तो देखा कि स्कूलों की हालत ऐसी है ही नहीं जहां दिव्यांग इंसान भी आसानी से पढ़ सके। स्कूल हमें ध्यान में रखकर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाता ही नहीं है।

स्कूलों का ढांचा सुगम नहीं
जनता में जागरूकता की कमी और स्कूलों में दुर्गम बुनियादी ढांचे के कारण मेरे लिए अपनी शिक्षा पूरी करना बहुत कठिन रहा है। दरअसल, अधिकतर भारतीय सार्वजनिक स्थल समावेशी न होने के कारण हमें और अयोग्य महसूस कराते हैं। इसे बदलने के लिए मैंने पिटीशन डाली।

मैं खुद को बेचारी नहीं बल्कि फाइटर मानती हूं। हर परिस्थिति में खुद के साथ हूं।
सरकार से कर रही मांग
मैं अपनी पिटीशन के जरिए भारत सरकार से मांग कर रही हूं कि स्कूल और कॉलेजों को सभी के लिए समावेशी बनाएं, जिससे मुझे और मेरे जैसे और लाखों नागरिकों को मदद मिले।

अभी मैं 21 साल की हूं और डिस्टेंस एजुकेशन से बीए कर रही हूं। 2019 स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया: चिल्ड्रन विद डिसएबिलिटीज ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दिव्यांग छात्रों में से 27% ने कभी किसी शैक्षणिक संस्थान में दाखिला नहीं लिया है। इसकी बड़ी वजह खराब इंफ्रास्ट्रक्चर है।

मैंने मुश्किल परिस्थितियों से निकलकर भी जिंदगी को चुना है। मेरा सभी से आग्रह है कि आप भी अपनी खुशियां चुनें। जो आपके पास नहीं है उसके लिए मेहनत करें। मेहनत से सब मिल जाता है।

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