हड़ताल से बाजार को बड़ा झटका , पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव
रायपुर – छत्तीसगढ़ में पिछले करीब 66 दिन से चली आ रही मनरेगा कर्मचारियों की हड़ताल भले ही समाप्त हो गई है, लेकिन इस हड़ताल ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका दिया है। अधिकारियों का दावा है कि इस हड़ताल की वजह से 600 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। यह पैसा सीधे मजदूरों के पास से बाजार में आता है। राज्य सरकार इस हड़ताल से होने वाले नुकसान को बखूबी समझ रही थी। यही वजह है कि पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव ने दो टूक कह दिया था कि काम पर लौटे उसके बाद ही मांगों पर विचार किया जाएगा। उन्होंने दूसरे विकल्प पर विचार करने की चेतावनी भी दी थी।
छत्तीसगढ़ में गर्मी के दिनों में मनरेगा के तहत ग्रामीणों को रोजगार अधिक मिलता है। इसके बाद खेती-किसानी का समय शुरू होने और बारिश के कारण रोजगार के अवसर कम निर्मित होते हैं। जबकि इसकी अवधि ने मनरेगा के कर्मचारियों ने हड़ताल कर रखी थी। इस बुरी तरह से काम प्रभावित हुआ है। मनरेगा के तहत पंजीकृत श्रमिकाें को काम भी पर्याप्त नहीं मिला। अधिकारियों के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2022-23 में हड़ताल की वजह से दो महीने में 25 लाख मानव दिवस रोजगार की सृजित हो सके हैं। जबकि बीते वित्तीय वर्षों में यह आंकड़ा 3 से 4 करोड़ तक जाता था। इस वर्ष मनरेगा के श्रमिकों के मजदूरी दर में 11 रुपए की वृद्धि हुई है। इस हिसाब से नुकसान ज्यादा हुआ है। जानकारी के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2021-22 में मई तक मनरेगा के कामों पर लगभग 418 करोड़ खर्च हुए थे। जबकि नए वित्तीय वर्ष के दो महीने में लगभग 152 करोड़ रुपए ही खर्च हो सके।
पलायन करने वालों की संख्या बढ़ी जानकारों का कहना है कि बारिश के पहले ज्यादातर ग्रामीण काम की तलाश में अन्य
राज्यों में जाते हैं। इस बार मनरेगा का काम नहीं चलने की वजह से पलायन करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। ट्रेनों की संख्या कम होने और आसानी से टिकट नहीं मिलने के बाद भी ग्रामीण अपने परिवार के साथ टिकट का जुर्माना कटवाकर गुजरात, दिल्ली और दक्षिण भारतीय राज्यों काम की तलाश में जा रहे हैं।
मनरेगा की हड़ताल समाप्त होने से पहले मंत्री रविन्द्र चौबे ने इस बात को स्वीकार किया था कि हड़ताल से छत्तीसगढ़ को बड़ा नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा था कि दो महीने में छत्तीसगढ़ को कितना नुकसान हुआ है, उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। काम ठप रहा। इन महीनों में मजदूरों की संख्या 26 लाख तक होती थी। काम नहीं मिलने से केंद्र का पैसा नहीं आया और विकास के काम प्रभावित हुए।
इन कामों पर पड़ा बड़ा असर
तालाब गहरीकरण
नए तालाबों का निर्माण
सड़क निर्माण
सामुदायिक व पंचायत भवन का निर्माण
प्रधानमंत्री आवास योजना का काम
पौधरोपण के कार्य
गोठानों का निर्माण
वर्जन
इस हड़ताल से गरीबों का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। गर्मी में ही काम की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। हड़ताल समाप्त करने का फैसला पहले ही हो जाना चाहिए था, लेकिन वे विश्वास रखें कि सरकार उनके हित की चिंता करेगी।