कोरोना वायरस के निरंतर फ़ैलाव के विरुद्ध हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली ही सर्वोत्तम हथियार
कोरोना महामारी के वर्तमान परिस्थिति में हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली किसी भी संभावित संक्रमण के विरुद्ध प्राथमिक रक्षा पंक्ति बन गई है। वर्तमान में ऐसे बहुत से स्वच्छता अभ्यास हैं, जो महामारी को फैलने से रोकने के लिए बहुत महत्वपूर्ण बन गए हैं। जैसे विषाणु (Virus) के बाहरी आक्रमण से खुद को बचाना है, उसी तरह विषाणु से बचाव के लिए अपनी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को अंदर से मजबूत करना भी जरूरी है। कोरोना विषाणु के निरंतर फैलाव के विरुद्ध हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली ही सर्वोत्तम हथियार है।
हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली एक जटिल व्यवस्था है तथा यह हमारे पाचन स्वास्थ्य से निरंतर प्रभावित होती है। हमारी आंत्र प्रणाली (Digestive System) अनेक सूक्ष्म जीवाणुओं का घर है, जो हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली के स्वास्थ्य को विनियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हाल के अध्ययनों ने यह सिद्ध किया है कि हमारी आंत्र प्रणाली में रहने वाले सूक्ष्म जीव तथा फेफड़ों के रोगों के बीच एक संबंध है। कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली का एक बड़ा हिस्सा हमारी जठरांत्र प्रणाली में ही स्थित है। इन खोजों के दृष्टिगत वैज्ञानिकों का मत है कि आंत्र प्रणाली में रहने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं का संवर्धन व पोषण तथा अपने पाचन स्वास्थ्य की देखभाल से इस महामारी के विरुद्ध हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रादाहिक प्रतिक्रिया ( Pro-Inf।ammatory Reactions) को नियंत्रित जा सकता है।
पाचन स्वास्थ्य तथा रोग प्रतिरक्षा तंत्र के बीच आश्चर्यजनक संबंध
अनुसंधान के द्वारा यह अब एक सुस्थापित तथ्य है कि पाचन तंत्र तथा रोग प्रतिरक्षा प्रणाली का एक दूसरे से निकट संबंध है। ऐसे प्रमाण लगातार मिलते जा रहे हैं, जिससे इस अंतर्संबंध की और पुष्टि हो रही है तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञ अब यह मानने लगे हैं कि हमारा स्वास्थ्य तथा प्रसन्नता हमारी जठरांत्र प्रणाली के स्वस्थ होने पर निर्भर करता है। वास्तविकता यह है कि हमारे स्वास्थ्य का हर पहलू इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपना भोजन कितनी अच्छी तरह पचा पाते हैं तथा हमारे भोजन के प्रति हमारी शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रिया हमारी मनोदशा, व्यवहार, ऊर्जा-स्तर, शारीरिक वजन, भोजन लालसाएं, अंतःश्रावों (Hormone) के संतुलन, हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है।
पाचन तंत्र तथा रोग प्रतिरक्षा तंत्र – एक संक्षिप्त परिचय
हमारे पाचन तंत्र में मुंह से लेकर बड़ी आंत तक सभी अंग शामिल होते हैं, जो भोजन के अंतर्ग्रहण तथा भोजन से पानी तथा अन्य पोषक तत्वों के अवशोषण में सहायता करते हैं। पाचन तंत्र के अपने सर्वोत्तम से निम्नतर स्तर पर कार्य करने की स्थिति में दस्त, कब्ज, सूजन, अम्लता, संक्रामक तथा रोग प्रतिरोध प्रणाली के स्वयं के विरुद्ध प्रतिक्रिया के कारण होने वाले रोग हो सकते हैं।
हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रमणों से लड़ने तथा हमें रोगों से सुरक्षित रखने के लिए उत्तरदायी है। हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली अनेक ग्रंथियों, विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं तथा बाहरी रोगकारी आक्रामकों के विरुद्ध प्रतिक्रिया को उद्दीपित करने वाले रसायनिक कारकों से मिलकर बना है।
पहले इन्हे स्वतंत्र इकाइयां समझा जाता था, परंतु अब इन्हे एक अंतर्सबंधित प्रणाली के रूप में देखा जा रहा है। इनमें से किसी भी एक प्रणाली के अपने सर्वोत्तम से निम्नतर स्तर पर कार्य करने की स्थिति में आपस में जुड़ी अन्य प्रणालियां भी बेकार हो सकती हैं।
जठरांत्रीय रोग प्रतिरक्षा तंत्र- रोग प्रतिरक्षा तंत्र का नवज्ञात भाग
लसीका ऊतक (Iymphoid tissues) तथा लसीका ग्रंथियां (Iymph nodes) हमारे रोग प्रतिरक्षा तंत्र के महत्वपूर्ण अंग हैं तथा यह हमारी हमारी जठर तंत्र की श्लेष्मा झिल्लियों में बहुतायत से स्थित होती हैं। इनमें अनेक प्रकार की रोग प्रतिरक्षा कोशिकाएं पाई जाती हैं जिनमें टी-कोशिकाएं, प्लाज़्मा कोशिकाएं, मास्ट कोशिकाएं, डेंड्राइटिक कोशिकाएं तथा माइक्रोफेज शामिल हैं। इन्हें सामूहिक रूप से पाचन तंत्रीय लसीका ऊतक (gut-associated Iymphoid tissue (GAIT) कहा जाता है। वास्तविकता यह है कि पाचन तंत्र में उपस्थित लसीका कोशिकाओं की संख्या प्लीहा (SpIeen), जो एक लसीका ग्रंथि है, में पाई जाने वाली लसीका कोशिकाओं की संख्या के लगभग समान होती है। इसके अतिरिक्त, पाचन तंत्र की श्लेष्मा झिल्लियों को, जिन्हें पहले सिर्फ अवशोषक कोशिकाओं से निर्मित समझा जाता था, अब रोग प्रतिरक्षा तंत्र के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में जाना जाता है। जठरांत्रीय तंत्र प्रतिदिन भोजन के साथ आने वाले अनेकों संभावित हानिकारक रोगाणुओं का सामना करता है। रोगाणुओं से ये मुठभेड़ रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं को परिपक्व होने में सहायता करती हैं और समय के साथ जब ये रोग प्रतिरोधी कोशिकाएं शरीर की अन्य प्रणालियों में प्रतिस्थापित हो जाती हैं, तो ये कोशिकाएं किसी भी अन्य रोगाणु आक्रमण के विरुद्ध प्रभावी रोग प्रतिकारक प्रतिक्रिया दे सकती हैं। इसके अतिरिक्त, जठरांत्रीय मार्ग में स्थित रोग प्रतिरोधी कोशिकाएं भोजन के साथ शरीर में प्रवेश करने वाले रोगाणुओं तथा बाहरी कारकों के संवर्धन को रोकती हैं।
जठरांत्रीय सूक्ष्म-जैविकी
हमारी आंतों में जीवाणु, कवक तथा विषाणुओं की बहुसंख्या उपस्थित रहती है जिसे हम जठरांत्रीय सूक्ष्मजैविकी के रूप में जानते हैं। आवशयक विटामिनों के संश्लेषण तथा पाचन में सहायता के अतिरिक्त ये हमारे रोग प्रतिरक्षा तंत्र को भी प्रभावित करते हैं। जठरांत्रीय सूक्ष्मजैविकी जठरांत्रीय मार्ग में विभिन्न गुणसूत्रों, जिनमें कि पोशाक तत्वों के अवशोषण, ऊर्जा उपापचय तथा सबसे महत्वपूर्ण रूप से रोग प्रतिरोध में शामिल गुणसूत्र शामिल हैं, कि अभिव्यक्ति को भी प्रभावित कर सकती है।
किसी भी प्रभावी रोग प्रतिरोधी प्रणाली का मुख्य लक्षण यह है की वह शरीर की सामान्य कोशिकाओं तथा रोगकारक सूक्ष्म जीवों में विभेद कर सके तथा उन्हे पृथक करके नष्ट कर सके। आंतों में उपस्थित जीवाणु रेशों का पाचन कर तथा उन्हे लघु श्रृंखला वसीय अम्ल (short-chain fatty acids (SCFAs) में परिवर्तित करके इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये वसीय अम्ल शरीर की विभिन्न कोशिकाओं, जिनमें रोग प्रतिरोधक टी-कोशिकाएं भी शामिल हैं, तथा संक्रियाओं को नियंत्रित कर सकते हैं। आंतों में मौजूद सूक्ष्म जीव टी कोशिकाओं से अभिक्रिया कर उन्हे यह निर्देश देती हैं कि किन कोशिकाओं को नष्ट करना है तथा किन कोशिकाओं को छोड़ देना है। इस प्रकार आंतों में उपस्थित सूक्ष्म जीवों के बीच का नाजुक संतुलन हमारी रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाने में सहायता करता है।
यह सर्वज्ञात है कि प्रत्येक व्यक्ति की आंत्र प्रणाली की सूक्ष्म जैविकी अलग होती है तथा यह आंत्र प्रणाली को स्वस्थ रखने में सहायता करती है। यह कहने की अवश्यकता नहीं है कि हमारे भोजन का हमारी आंत्र प्रणाली की सूक्ष्म जैविकी पर गहन प्रभाव पड़ता है। हमारा भोजन इन जीवाणुओं के लिए लाभदायक भी हो सकता है, परंतु कुछ प्रकार के भोजन इस नाजुक जैविक पर्यावरण को हानि भी पहुंचा सकते हैं। वास्तविकता यह है कि हमारी आंत्र प्रणाली में मौजूद विभिन्न जीवाणु प्रजातियों के मध्य संतुलन हमारी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकता है।
आंतों की सूक्ष्म जैविकी को प्रोबायोटिक्स तथा आंतों के अवशिष्ट पदार्थों से संश्लेषित जीवाणुओं के प्रतिस्थापन से प्रभावित बच्चों की कई गंभीर स्वास्थ्य अवस्थाओं जैसे कि क्षयकारी तथा तीव्र संक्रामक अतिसार, जीवाणुरोधी औषधियों के कारण होने वाले अतिसार तथा वेंटिलेटर से होने वाली निमोनिया की चिकित्सा मेंलाभकारी पाया गया है।
मजबूत रोग प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए स्वस्थ आंत्र प्रणाली है आवश्यक
यह सर्वज्ञात है कि आंतों की सूक्ष्म जैविकी प्रत्येक व्यक्ति मेंअलग होती हैं तथा यह आंतों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। इसलिए, अच्छे लाभप्रद सूक्ष्म जीवाणुओं की वृद्धि आंतों को स्वस्थ रखती है।
ऐसे बहुत से खाद्य पदार्थ हैं जो आंतों तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य में वृद्धि करते हैं। इनमें ताजे फल, सब्जियां तथा रेशेयुक्त खाद्य जैसे कि बीन्स शामिल हैं, आंतों में लाभप्रद सूक्ष्म जीवों के संवर्धन में सहायता करते हैं। किण्वनीकृत (Fermented) खाद्य तथा प्रोबायोटिक्स का प्रयोग आंतों में लाभप्रद सूक्ष्म जीवों को बढ़ावा देने मेंलाभकारी हैं। प्रोबायोटिक्स की अच्छी मात्रा का सेवन भोजन असह्यता (Food A।।ergy) से होने वाले संक्रमणों को कम करने मेंसहायता करता है। हालांकि, प्रोबायोटिक्स के प्रयोग के स्वास्थ्य पर प्रभाव के संबंध मेंअभी अनुसंधान शुरू ही हुआ है। इसके ठीक विपरीत, परिष्कृत और तले- भुने भोजन आंतों की सूक्ष्म जैविकी पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं तथा आवश्यक जीवाणुओं के मध्य असंतुलन उत्पन्न कर सकते हैं।
विशेषज्ञ लौंग, कोको पाउडर, बेरीयां, गिरियां तथा सोया जैसे खाद्य पदार्थों के सेवन की भी अनुशंसा करते हैं। ये खाद्य पदार्थ रासायनिक तत्व पॉलीफिनोल से समृद्ध होते हैं, जो आंतों की सूक्ष्म जैविकी को सुधारने में सहायक होते हैं । ये तत्व पाचन प्रणाली को सर्वोत्तम संभव स्थिति मेंबनाए रखने में सहायता करते हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त, व्यायाम, पर्याप्त नींद तथा तनाव को नियंत्रित करना भी आंतों के तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वैसे आयुर्वेदिक टॉनिक या सिरप भी लाभकारी होगा जैसे झंडू पंचारिष्ट। यह न केवल पाचन प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है, बल्कि अम्लता, गैस, अपच, पेट का फूलना और कब्ज जैसी समस्या को भी दूर करता है।
पाचन तंत्र की समस्या कई प्रकार की असह्यताओं (A।।ergy), संधिशोथ, स्व-प्रतिरक्षा तंत्रीय व्याधियों जैसे कि असंतोषजनक मलत्याग सिंड्रोम, मुहांसे, जीर्ण थकान, मानसिक विकास में बाधा, मानसिक क्षीणता यहां तक कि कैंसर का अंतर्निहित कारण हो सकता है। वास्तविकता यह है कि विश्व में लगातार बढ़ रही स्व-प्रतिरक्षा तंत्रीय तथा सूजन-संबंधी व्याधियों का संबंध आधुनिक जीवन शैली के कारण भोजन अभ्यासों में हुए परिवर्तनों से हो सकता है। इसलिए अपनी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को सर्वोत्तम कार्य स्थिति में रखने के लिए अपने पाचन स्वास्थ्य का ध्यान रखना तथा जठरांत्रीय स्वास्थ्य के लिए अनुकूल भोजन आवश्यक है।