शहीद वीर नारायण सिंह के स्मारक के पास गमले में रोपे पौधे… हसदेव के लिए राजभवन के पास प्रदर्शन:JCCJ
रायपुर – हसदेव के जंगलों को बचाने के लिए जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (JCCJ) ने रविवार को राजभवन के पास चौराहे पर प्रदर्शन किया। JCCJ के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी की अगुवाई में प्रदर्शनकारियों ने राजभवन के पास स्थित शहीद वीर नारायण सिंह के स्मारक के पास गमलों में पौधे रोपे। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी से हसदेव को बचाने की अपील की।
अमित जोगी ने कहा, हसदेव अरण्य की कटाई का मामला बहुत संगीन है। कोयले की माइनिंग के लिए जंगल की कटाई को मंजूरी देने से केवल हसदेव अरण्य नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ पर विपदा आ चुकी है। हसदेव अरण्य लगभग 350 विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों का घर है। जनजातियों और हाथियों का संरक्षित वनक्षेत्र है। इसके अलावा हसदेव नदी से पूरे जांजगीर-चांपा जिले का कृषि क्षेत्र सिंचित होता है। छत्तीसगढ़ के लाखों किसानों का भविष्य हसदेव अरण्य पर निर्भर है। अमित जोगी ने कहा कि अगर खनन का काम नहीं रुका तो चार हजार वर्ग किलोमीटर में फैला हसदेव अरण्य केवल 400 वर्ग किलोमीटर में सिमट कर रह जाएगा।
अमित जोगी ने कहा, अमर शहीद वीर नारायण सिंह गोंड जनजाति के थे। 1857 में वे छत्तीसगढ़ की जमीन और जंगल बचाने के लिए अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अमर हो गए। आज विश्व पर्यावरण दिवस पर उनके स्मारक पर पौधरोपण हम हसदेव अरण्य में चल रहे अवैध खनन, अवैध जंगल कटाई और गोंड एवं अन्य आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार और जांजगीर जिले के किसानों को भविष्य में होने वाली पानी की कमी का विरोध कर रहे हैं।
हसदेव कूच की भी तैयारी
अमित जोगी ने कहा, छत्तीसगढ़ के इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर यहां के दोनों राष्ट्रीय दल कुछ बोल नहीं रहे हैं। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ इस मुद्दे पर संघर्ष करेगा। उन्होंने बताया, आने वाले सप्ताह में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में हसदेव कूच करेंगे। वे वहां आंदोलन कर रहे साथियों के साथ विराट विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे। अमित जोगी उस जत्थे की अगुवाई करने वाले हैं।
हसदेव अरण्य का विवाद क्या है
हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ के कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिले के बीच में स्थित एक समृद्ध जंगल है। करीब एक लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला यह जंगल अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है। वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की साल 2021 की रिपोर्ट बताती है कि इस क्षेत्र में 10 हजार आदिवासी हैं। हाथी, तेंदुआ, भालू, लकड़बग्घा जैसे जीव, 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई गई हैं।
इसी इलाके में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को कोयला खदान आवंटित है। इसके लिए 841 हेक्टेयर जंगल को काटा जाना है। वहीं दो गांवों को विस्थापित भी किया जाना है। स्थानीय ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं। 26 अप्रैल की रात प्रशासन ने चुपके से सैकड़ों पेड़ कटवा दिए। उसके बाद आंदोलन पूरे प्रदेश में फैल गया। अभी प्रशासन ने फिर पेड़ काटे हैं। विरोध बढ़ता जा रहा है।
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