अस्पतालों-गोदामों में हर वर्ष 15 करोड़ की दवा हो रही एक्सपायर, डॉक्टर व नर्सिंग स्टाफ की लापरवाही…
रायपुर। सीजीएमएससी में हर साल 12 से 15 करोड़ रुपए की दवा एक्सपायर हो रही है। ये सीजीएमएससी, अस्पतालों में डॉक्टर, फार्मासिस्ट व नर्सिंग स्टाफ की लापरवाही का नतीजा है। एक्सपायर होने वाली दवा प्रदेश के सबसे बड़े आंबेडकर अस्पताल में दवा के लिए स्वीकृत बजट का आधा है। यानी इतने रुपए में आंबेडकर अस्पताल आने वाले मरीजों को 6 माह तक दवा दी जा सकती है। वहां दवा का सालाना बजट 29 करोड़ रुपए हैं। हाल में डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में 40 से 50 हजार रुपए प्रति डोज वाला थक्का हटाने वाले इंजेक्शन टेनेक्टेज 20 मिग्रा एक्सपायर हुआ है। आरोप है कि ब्रेन स्ट्रोक के महिला मरीज को दो दिन पहले एक्सपायर इंजेक्शन लगा दिया गया।
अस्पताल प्रबंधन इसकी पड़ताल कर रहा है कि आखिर किस स्तर पर लापरवाही हुई है। सीजीएमएससी के अधिकारी एक्सपायर दवा को आदर्श स्थिति बताते हैं। उनका दावा है कि सालाना 350 से 400 करोड़ रुपए की दवा खरीदी जाती है। एक्सपायर होने वाली दवा कुल बजट का 5 फीसदी भी नहीं है। पिछले साल जुलाई में डीकेएस में 26 लाख रुपए का आईवी फ्लूड एक्सपायर हुआ था। पत्रिका की इस पड़ताल में पता चला कि दवा कॉर्पोरेशन के गोदामों व अस्पतालों में हर साल करोड़ों रुपए की दवा कालातीत हो जाती है।
डीकेएस में जो आईवी फ्लूड एक्सपायर हुआ था, वह कैल्शियम मिक्स वाला था। ये आईसीयू में भर्ती मरीज व ऑपरेशन थिएटर में सर्जरी के दौरान मरीजों को लगाया जाता है। एक्सपायर बोतलों की संख्या 30 हजार है। पत्रिका ने 30 जून के अंक में मरीजों को लगानी थी स्लाइन, पड़े-पड़े लाखों की ग्लूकोज की बोतल एक्सपायर शीर्षक से समाचार भी प्रकाशित किया था। खबर प्रकाशित होने के बाद स्वास्थ्य मंत्री ष्याम बिहारी जायसवाल ने मामले में संज्ञान लिया है और प्रदेशभर से एक्सपायर होने वाली दवाओं की जानकारी मांगी थी।
मई 2024 में हो गया था एक्सपायर
डीकेएस में जो आईवी फ्लूड एक्सपायर हुआ था, उसका बैच नंबर बी22एफ058ई है। यह जून 2022 में बना था और मई 2024 तक उपयोग किया जा सकता था। यह भिवाड़ी की फार्मास्युटिकल कंपनी में बनी है। दवा कॉर्पोरेशन ने आईवी फ्लूड डीकेएस समेत दूसरे अस्पतालों में भी सप्लाई किया है। चूंकि ये कैल्शियमयुक्त स्लाइन है तो इसे मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल व कुछ बड़े सीएचसी में उपयोग किया जा सकता है। 2012 में दवा कॉर्पोरेशन का गठन हुआ था। इसके बाद से दवाएं एक्सपायर होने की फेहरिस्त लंबी है।
इंजेक्शन नहीं होने पर बाहर से मंगाने की मजबूरी
डॉक्टरों की लापरवाही से यहां महंगा इंजेक्शन एक्सपायर हो रहा है। इधर, इंजेक्शन नहीं होने का हवाला देकर स्टाफ मरीज के परिजनों से बाहर से इंजेक्शन मंगाने पर मजबूर करते हैं। दूसरी ओर, सीजीएमएसी में ऑनलाइन सिस्टम डेवलप करने का दावा तो अधिकारी करते हैं, लेकिन नियर एक्सपायरी या एक्सपायरी होने वाली दवाओं को मरीजों को देने में नाकाम है। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसा सिस्टम डेवलप किया जाना चाहिए, जो एक्सपायर होने से पहले सिस्टम अलर्ट कर दे। इससे दवाएं एक्सपायर नहीं होंगी और जनता की गाढ़ी कमाई बच जाएगी।