एंटीबायोटिक के गलत इस्तेमाल से बढ़ रहा खतरा: अध्ययन
21वीं सदी की सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस को माना जा रहा है। लेकिन भारत में डॉक्टर वायरल बीमारियों के लिए भी एंटीबायोटिक दवाएं लिख रहे हैं। हाल ही में साइंस एडवांसेज पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन ने इस समस्या की गहराई को उजागर किया है।
दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने इस अध्ययन में भारत के कर्नाटक और बिहार के 253 कस्बों में 2,282 प्राइवेट डॉक्टरों के प्रिस्क्रिप्शन का विश्लेषण किया। और फिर उनसे बातचीत भी की। टीम ने पाया कि 70 % डॉक्टरों ने बच्चों के वायरल दस्त में भी एंटीबायोटिक दवाएं लिखीं दी जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे मामलों में दिशा-निर्देश मौजूद हैं।
इसके अलावा 62% डॉक्टर जानते थे कि मरीजों को एंटीबायोटिक दवाएं नहीं देनी चाहिए फिर भी उन्होंने मरीज को दवा दी। शोधकर्ताओं ने कहा है कि अगर केवल इन डॉक्टरों को एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर जागरूकता पर ध्यान दिया जाए तो महज गलत प्रिस्क्रिप्शन में सिर्फ 6% कमी आ सकती है, लेकिन डॉक्टर वही लिखे जो वे जानते हैं(यानी नो एंटीबायोटिक) तो यह गलत प्रिस्क्रिप्शन 30% तक घट सकती हैं।
दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नीरज सूद ने कहा है कि भारत में हर साल 50 करोड़ से ज़्यादा एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री होती है। जिससे यह रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक बन गया है। यह एक ऐसा खतरा है जो पहले से ही विश्व भर में हर साल लगभग 50 लाख मौतों का कारण बन रहा है। इसके अलावा भारतीय बच्चों में दस्त एक प्रमुख जानलेवा बीमारी भी है। ऐसे में यह शोध हस्तक्षेपों की तत्काल आवश्यकता के बारे में बता रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल जानकारी में सुधार से स्थिति नहीं बदलेगी, बल्कि स्वास्थ्य सेवा देने वालों के व्यवहार में भी बदलाव जरूरी है।