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आरक्षण विधेयक के बदले प्रारूप पर लगेगी मुहर, उच्चतम न्यायालय में सरकार की याचिका पर भी चर्चा

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में गुरुवार को कैबिनेट की बैठक होने जा रही है। यह बैठक दोपहर 12 बजे से होनी है। इसमें विधानसभा के विशेष सत्र में पेश करने के लिए आरक्षण विधेयक के बदले प्रारूप पर चर्चा होनी है। पूरी संभावना है कि कैबिनेट इस प्रस्ताव को मंजूरी दे देगी। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट में सरकार की विशेष अनुमति याचिका की स्थिति पर भी चर्चा होनी है। इसकी सुनवाई एक दिसंबर को होनी है। सरकार ने उसी दिन विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलाया है।

सरकार के एक मंत्री ने बताया, “उच्च न्यायालय के फैसले के बाद आरक्षण मामले में जिस तरह की परिस्थितियां बनी हैं, उसको लेकर राज्य सरकार बहुत गंभीर है। तय हुआ है कि आरक्षण अधिनियम के जिन प्रावधानों को उच्च न्यायालय ने रद्द किया है, उसे कानून के जरिए फिर से प्रभावी किया जाए। इसके लिए हम विधेयक ला रहे हैं। दो दिसंबर को इसे पारित करा लिया जाएगा। ‘बताया जा रहा है, सरकार इस विधेयक के साथ एक संकल्प पारित करने पर विचार कर रही है।

इसमें केंद्र सरकार से आग्रह किया जाएगा कि वह छत्तीसगढ़ के आरक्षण कानून को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल कर ले। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, अधिनियम के 9वीं अनुसूची में शामिल होने का प्रभाव यह होता है कि उसे किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दिया जा सकता। फिलहाल यही एक रास्ता दिख रहा है जिससे आरक्षण को अविवादित रखा जा सकता है। बताया जा रहा है, कैबिनेट में कुछ और विभागीय प्रस्तावों पर चर्चा होनी है। एक मंत्री ने बताया, इस कैबिनेट में सरकार कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाली है। बैठक खत्म होने के बाद इसकी जानकारी सामने आएगी।

तीन राज्यों की अध्ययन रिपोर्ट और क्वांटिफायबल डाटा भी मौजूद

आरक्षण मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट ने अनुपात बढ़ाने के औचित्य और आधार पर सवाल उठाए थे। सरकार का कहना है कि उन्होंने 2012 में बने सरजियस मिंज कमेटी और ननकीराम कंवर कमेटी की रिपोर्ट अदालत में पेश करना चाहती थी, लेकिन अदालत ने तकनीकी आधारों पर इसकी अनुमति नहीं दी। सरकार ने अभी जनप्रतिनिधियों और अफसरों का एक अध्ययन दल तमिलनाडू, कर्नाटक और महाराष्ट्र के आरक्षण मॉडल का अध्ययन करने भेजा था। उसकी रिपोर्ट आ गई है। वहीं क्वांटिफायबल डाटा आयोग ने प्रदेश की आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के गरीबों के सर्वे का काम पूरा कर रिपोर्ट दे दी है। यह दोनों रिपोर्ट भी गुरुवार को कैबिनेट के सामने रखी जानी हैं।

इससे पहले जनजातीय सलाहकार परिषद की बैठक

गुरुवार को कैबिनेट से पहले जनजातीय सलाहकार परिषद की बैठक हो रही है। इसमें आरक्षण संकट के संभावित समाधान की नीतियों पर चर्चा होनी है। बताया जा रहा है मुख्यमंत्री और प्रमुख सामाजिक नेताओं की मौजूदगी में अफसर अदालत में चल रही कार्यवाही, दक्षिण के राज्यों के अध्ययन रिपोर्ट की फाइंडिंग और विशेषज्ञों की राय के बारे में एक ब्रीफ करेंगे।

जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की बात

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बार-बार जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने की बात कह रहे हैं। ऐसे में संभावना बन रही है कि सरकार नये आरक्षण संशोधन विधेयक में इसे शामिल करेगी। इसका मतलब यह हुआ कि अनुसूचित जनजाति को 32% और अनुसूचित जाति को 13% आरक्षण का प्रावधान होगा। करीब 50% से अधिक आबादी वाले अन्य पिछड़ा वर्ग को मंडल आयोग की सिफारिशों के मुताबिक 27% आरक्षण की भी बात है। इसके अलावा केंद्र सरकार से लागू समान्य वर्ग के गरीबों का 10% आरक्षण भी प्रभावी होगा।

अनुसूचित जाति वर्ग का विवाद कायम

2012 तक प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग को 16% आरक्षण मिल रहा था। 2012 में बदलाव के बाद इसे 12% कर दिया गया। गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी इसी का विरोध करने उच्च न्यायालय गई थी लेकिन उसने पूरा जोर आदिवासी समाज को दिये जा रहे 32% आरक्षण को असंवैधानिक साबित करने में लगाया। अब हाईकोर्ट के आदेश से पूरा आरक्षण रोस्टर खत्म हो चुका है। ऐसे में सरकार जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण 13% करती है तो अनुसूचित जाति वर्ग की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। अगर यह 16% होता है और सामान्य वर्ग के गरीबों का 10% आरक्षण भी शामिल कर लिया जाए तो आरक्षण की सीमा 85% हो जाएगी।

एक्सपर्ट कह रहे हैं, विधेयक लाने से खतरा खत्म नहीं होगा

संविधानिक मामलों के विशेषज्ञ बी.के. मनीष का कहना है, बिलासपुर उच्च न्यायालय ने 19 सितम्बर के अपने फैसले के पैराग्राफ 81 में SC-ST को 12-32% आरक्षण को इस आधार पर अवैध कहा है कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। यह भी कहा है कि मात्र प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता से, बिना किसी अन्य विशिष्ट परिस्थिति के 50% आरक्षण की सीमा नहीं लांघ सकते।

पैराग्राफ 84 में हाईकोर्ट ने कह दिया है कि सामान्य वर्ग की तुलना में नौकरी या शिक्षा की प्रतियोगिता में जगह हासिल न कर पाना वह विशिष्ट परिस्थिति नहीं है। इन दोनों टिप्पणियों में सरकार द्वारा SC-STका पीएससी, मेडिकल, इंजीनियरिंग, शासकीय सेवाओं में प्रदर्शन-मौजूदगी और प्रति व्यक्ति आय, परिवार प्रमुख का पेशा जैसे आंकड़ों को गैर-जरूरी और नाकाफी ठहरा दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने जनसंख्या आनुपातिक प्रतिनिधित्व के विरोध में यही बातें 1961 से लगातार कही हैं। कई बार बताया गया है कि बहिष्करण की मात्रा या प्रकृति जांचने और उसके अनुसार कल्याणकारी योजनाएं बनाने के बाद ही परिस्थितिनुसार आरक्षण दिया जाना चाहिए।

मनीष का कहना है, जब तक 19 सितंबर के फैसले की ये टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट हटा नहीं देता तब तक आरक्षण देने का रास्ता ही बंद है। विधायिका, न्यायालय के किसी फैसले को सिर्फ उसका आधार हटाकर ही बदल सकती है, दूसरे किसी तरह से नहीं। अगर सरकार विधेयक लाकर आरक्षण देती भी है तो अदालत उसे रोक देगा।

आरक्षण मामले में कब-कब क्या हुआ

छत्तीसगढ़ में सरकार ने 2012 आरक्षण के अनुपात में बदलाव किया था। इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग का आरक्षण 20 से बढ़ाकर 32% कर दिया गया। वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 16% से घटाकर 12% किया गया। इसको गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। बाद में कई और याचिकाएं दाखिल हुईं।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितंबर को इस पर फैसला सुनाते हुए राज्य के आरक्षण अधिनियमों की उस धारा को रद्द कर दिया, जिसमें आरक्षण का अनुपात बताया गया है। इसकी वजह से आरक्षण की व्यवस्था संकट में आ गई। भर्ती परीक्षाओं का परिणाम रोक दिया गया है। परीक्षाएं टाल दी गईं।

काउंसलिंग के लिए सरकार ने कामचलाऊ रोस्टर जारी कर 2012 से पहले की पुरानी व्यवस्था बहाल करने की कोशिश की। इस बीच आदिवासी समाज के पांच लोग उच्चतम न्यायालय पहुंचे। राज्य सरकार ने भी इस फैसले के खिलाफ अपील की है। एक अध्ययन दल भी तमिलनाडू और कर्नाटक की आरक्षण व्यवस्था का अध्ययन करने भेजा है। 10 नवम्बर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की अधिसूचना जारी कर दी।

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