प्रदेश के सबसे बड़े हॉस्पिटल में जीवनरक्षक दवा उपलब्ध नहीं
राजधानी रायपुर के डॉ. भीमराव अम्बेडकर मेमोरियल हॉस्पिटल (मेकाहारा) में स्वास्थ्य व्यवस्था की एक चौंकाने वाली हकीकत सामने आई है। 35 वर्षीय महिला मरीज, जिसे Chronic Myeloid Leukemia (CML) यानी खून का कैंसर डायग्नोज़ किया गया है, पिछले कई दिनों से अस्पताल से लिखी गई मुख्य दवा Imatinib 400 mg के लिए भटक रही है। डॉक्टर ने पर्ची में 30 दिनों की दवा लिख दी, लेकिन अस्पताल के दवा स्टोर में यह लाइफसेविंग दवा आज तक उपलब्ध नहीं कराई गई।

इमातिनिब कोई सामान्य गोली नहीं, बल्कि CML मरीजों के लिए आजीवन चलने वाली अनिवार्य दवा है, जिससे मरीज की जान बचती है और बीमारी नियंत्रित रहती है। बाज़ार में इसकी कीमत 6,000 से 12,000 रुपये प्रतिमाह तक है, जिसे हर गरीब या मध्यमवर्गीय परिवार वहन नहीं कर सकता। ऐसे में सरकारी अस्पताल में दवा न मिलना सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि मरीज की जिंदगी से खिलवाड़ है।
स्वास्थ्य विभाग बार-बार दावा करती है कि “कैंसर मरीजों को मुफ्त इलाज” मिलता है, लेकिन असलियत यह है कि मरीज पर्ची लेकर दवा विंडो पर बार-बार लौटाया जा रहा है “दवा अभी नहीं आई बाद में आना। राजधानी का यह हाल है, तो गांव और जिलों में मरीज कैसे इलाज पाएंगे? प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर यह सवाल आज पहले से कहीं ज़्यादा जरूरी है। आख़िर इलाज का अधिकार ज़िंदा है, या वह भी कागज़ों में दफन हो चुका है?

